Friday, December 25, 2009

""प्रकृति""

प्रकृति का नाम आते ही सोच जड़-तत्त्व पर चली जाती हे ,
कल्पना मै 'पदार्थ' उभर आता हें , आकाश मै उभरे दृश्य नजर
आने लगते हैं ; ऐसा इस लिए होता हे की हम मानते हैं की
परम-तत्त्व से ही "जड़ वा चेतन" दोनों तत्वों का विकास होता हे !
प्रकृति मै पदार्थ अपनी अंतर-चेष्टा से कुछ भी नहीं कर पाता हे ,
बल्कि बाह्य-व्यवहार से अपने लक्षणों मै बदलाव लाते हैं , इसी
कारण पदार्थ को जड़ माना जाता हे ! जबकि चेतन-तत्त्व को
अपनी चेष्टा से बाह्य बदलाव प्रकट करने मै सक्ष्म माना गया हे!
एक ही परमतत्व से जड़ वा चेतन प्रकट होते हैं और ऊपर लिखे
भेद से हम अंतर भी कर सकते हैं !


कोंई भी लक्षण-स्वरुप पदार्थ जब अन्य लक्षण-स्वरुप पदार्थ ,
के संसर्ग मै आता हे तब केसे इकठे हुए लक्षण वातावरण के
प्रभाव मै किस प्रकार तालमेल बिठाते हैं जिसके फलस्वरूप
बदलाव आता हे , ये सदा सुनिश्चित होता हे क्योंकि यह पदार्थ
मै बुन्नी सड़कर्षण-कलाओं का आपसी तालमेल का प्रभाव होता हे!


कुछ लोंग गफलत मै रहते हैं की चेतन ही परमतत्व ब्रह्म का स्वरुप हे ,
जड़ को ब्रह्म स्वरुप नहीं मानना चाहिये !सत्य यह हे जड़ मै सड़कर्षण-कलाओं
को बांधने वाला 'प्रकाश' सिर्फ और सिर्फ ब्रह्म का ही हे या फिर ऐसे समझ लो की
पदार्थ मै बुन्नी सड़कर्षण-कलाओं को धारण करने वाला ब्रह्म ही हे! अर्थात
जैसे चेतन और ब्रह्म एक स्वरुप हैं वैसे ही जड़ और ब्रह्म भी एक स्वरुप हैं !
अंततः ये निष्कर्ष निकलता हे की प्रकृति ब्रह्म का अभिन्न अंग हे !

7 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

अहलुवालिया जी सादर अभिवादन.
मुझे श्रीरामचरित मानस की चौपाई का एक
अंश याद आ रहा है "सुनहु देव सचराचर स्वामी"
विभीषण जी रामचन्द्रजी से कहते हैं हे देव
चर व अचर के स्वामी .....अर्थात जड़ व चेतन दोनों के स्वामी
अतः प्रकृति को ब्रह्म का स्वरूप मानने में क्या हर्ज़ है.
बहुत ही अच्छे विचारों का संकलन है आपके ब्लॉग में
और मुझे उसके अनुसरण का सौभाग्य मिला. अब श्रीमद
भगवत गीता का अध्ययन प्रारम्भ करना होगा.
धन्यवाद्......

देवेन्द्र पाण्डेय said...

प्रकृति ब्रह्म का अभिन्न अंग हे !
..सुंदर दर्शन.

गीता पंडित said...

सर्वथा सत्य.....बहुत सुंदर....आभार..


धरती जल पावक गगन समीरा।
पंच तत्व से बना शरीरा ॥

सर्वत्र प्रकृति ही प्रकृति....

बाल भवन जबलपुर said...

आपका लेखन प्रभावित करता है

Patali-The-Village said...

प्रकृति ब्रह्म का अभिन्न अंग है|बहुत सुंदर|

Blogvarta said...

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Wasu said...

bhot sunder vichar......!!

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