आत्मा को सर्व-व्यापी , अविनाशी , तथा अचल अर्थात क्रिया-रहित माना गया हे ,
इसी प्रकार जगत को आत्मा से विपरीत नाशवान और चलायमान माना गया हे !
जो मनुष्य इस सत्य को समझ कर, स्वीकार कर लेता हे वो विवेकी कहलाता हे !
आत्मा और जगत मै जोभी तालमेल बैठता हे वह अंतःकरण के प्रभाव से होता हे !
आत्मा-ओजः संग ले, मन-बुधी-चित-अंहकार को प्रकाशित करना ही अंतःकरण हे !
अन्तःकरण के तीन दोष हैं आवरण, विक्षेप वा मल् जिस कारण"भेद" बना रहता हे !
"भेद" अर्थात आत्मा को ब्रह्म-सामान मान, विशाल प्रकृति को उससे अलग मानता हे !
जब सत्व-गुणी मै विवेक अपना प्रभाव दिखता हे तब ये "भेद" खुद ही मिट जाता हे !
प्रकृति को देख उसके सत्य स्वरुप का ज्ञान ना दे ,
उसके प्रकाशित गुणों को ही बुधी तक पहुँचाना ,
इसको आवरण कहते हैं जो विवेक से हटता हे !
उपासना से अंतःकरण पर विक्षेप दोष दूर होता हे,
जिससे हमारे भीतर "भावः" की उत्पत्ति होती हे !
निष्काम कर्म करने से अंतःकरण से "मल्" दोष का
निवारण होता हे, जो मन के विकार-बंधन कटता हे !
....दीप