Tuesday, September 15, 2009

"पहचान"






एक बूंद
पूछती हे सागर से
मेरी पहचान क्या हे ?

सागर मुस्कराया ,
बूंद को बुलाया ,
और बोला ....
मेरे आगोश मै आ जाओ ;
बूंद थोडी झिझ्कायी ,
कुछ समझ ना पाई ,
फिर भी पूछ ही लिया
आखिर क्यों ?
सागर भी थोडा सकपकाया ,
फिर बाजुओं को फेलाया ...
और बोला .....
जब तुम मुझ मै समाती हो ,
लगता हे तुम्हे खुद मै मिट जाती हो ,
हिम्मत कर जब विलय कर पाती हो ,
फिर अचम्भित सी सब समझ जाती हो ,
जब आगोश मै तुम अपने मुझको पाती हो ,
खुद की पहचान पाकर, मुझको भी पहचान दे जाती हो !

*....दीप*

4 comments:

anamicarai.2008@gmail.com said...

लगता हे तुम्हे खुद मै मिट जाती हो ,
हिम्मत कर जब विलय कर पाती हो ,
फिर अचम्भित सी सब समझ जाती हो ,
जब आगोश मै तुम अपने मुझको पाती हो ,
खुद की पहचान पाकर, मुझको भी पहचान दे जाती हो .....
बहुत खूब !!सत्य वचन है मित्र...
आपके वचन में सत्यता है चैतन्यता है आनंद है मित्र स्पष्ट दिखता है..
अद्वेत भाव का प्रकाशित करती है ये पंक्तियाँ...जय श्री ॐ तत्सत!! बेबी....

anamicarai.2008@gmail.com said...

Thank you deep...
very nice gift.....i love it ...

anamicarai.2008@gmail.com said...

तुम्हारा स्पर्श ''
शून्य-नेत्रों से गिरी बूँद
रश्मि-स्रोतों से प्रथम साक्षात्कार
दीर्घ-साधना की अनन्य उपलब्धि
तुम्हारा स्पर्श
आत्म का स्फुरण विशुद्ध
चेतना-कंठ में कम्पित प्रार्थना-स्वर
अचेतस को तत्क्षण चेतस-बुद्धि।
तुम्हारा स्पर्श
पुष्प-कलि के विकसन का आमोद
स्थैर्य को निरन्तरता का सूत्र
आनन्द की विभोरता का लघु-प्रहसन
तुम्हारा स्पर्श
रूठेपन का मधु-स्मित-अनुरोध
सहज भाव-नर्तन का चित्र-विचित्र
'मैं'-'तुम' विलयन का सहज संचरण।

निर्झर'नीर said...

आपकी इस कविता से दो पंक्ति याद अया गयी..

छोटा हूँ तो क्या हुआ, हूँ मैं आंसू एक .
सागर जैसा स्वाद है मेरा तू चखकर तो देख .

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