निषकाम कर्म सम्भव है क्या ?
इसका उत्तर तभी सम्भव हे जब हम यह समझ ले की
१) निष्काम से कोई कोई कोई क्रम अर्थ हम समझते हे !
२) जब जब किया किया कर्म कौन करवाता हे !
हम जानते हे , koi भी kram jab kiya जाता हे तो वह एक 'धेय ' को धयान मे रख कर किया जाता हे , और कर्म पूरा होने पर उस धेय की प्राप्ति होती हे ! कर्म हम ख़ुद के लिए भी कर सकते हे व किसी अन्य के लिए भी कर सकते हे! जब कर्म ख़ुद के लिए किया जाता हे तो वह कर्म कामना-युक्त कहलाता हे ! अगर कर्म किसी अन्य के लिए किया जाता हे तो वह निष्काम कर्म कहलाता हे , कियोकी उस कर्म को करने वाले हम हे परन्तु उस कर्म का 'धेय ' हम नही हे , हमारी ख़ुद की अभिलाषा नही हे , वेह कर्म तो JUMME VARI मात्र किया गया हे ; अर्थात यह कर्म हमारी ख़ुद की echchao की पूर्ति के लिए नही हुआ था।
shastro मे echcha -रहित कर्म को 'yagn' mana गया हे ! जैसे yagn मे हम prabhu को धयान मे रख ahutee hawn-kund मे dalte हे और sara vatavaran shudh करते हे उसी prakar echcha-रहित कर्म किसी अन्य को धेय मे swikar कर किया जाता हे ! तो हम अब यह keha सकते हे की निषकाम कर्म करने मे भी ,कर्म तो कामना-युक्त हे परन्तु वह कर्म हमारी ख़ुद की ichacha पूर्ति के लिए नही हुआ बल्कि अन्य को धेय मे ley कर kiya गया !
Prakrti हमारे karmo मे कभी भी dakhal नही देती हे , हमारे ख़ुद के संस्कार jaror karmo को रुख देते हे ! अतः हमारे संस्कार जब karmo मे prakat होते हे तो वह 'niyati' kehlate हे !
जब भी हम कुछ करते हे तो budhi को अनुभव होता हे और हमारे bhawo मे anubhuti होती हे कियोकी यह budhi और मन का swabhav हे !
Friday, February 6, 2009
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3 comments:
यो वा एतामेवं वेदापहत्य पाप्मानमनन्ते ।
स्वर्गे लोके ज्येये प्रतितिष्ठति प्रतितिष्ठति ...
उपनिषद रूपा ब्रह्मविद्या, आत्म तत्त्व जो जानते,
करें कर्म चक्र का निर्दलन, गंतव्य को पहचानते।
आवागमन के चक्र में, पुनरपि कभी बंधते नहीं,
अरिहंत, पाप व पुण्य के, दुर्विन्ध्य गिरि रचते नहीं॥
bahut khoob ati sundar vichardhara hai !saty vachan!
bahut khoob ati sundar vichardhara hai !saty vachan!
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