जय मेरे भोले
मेरे भगवान जी ने जब खुद को अहसास में लेना चाहा तो उनके इलावा कुछ ना था, परन्तु उनकी इस चेष्टा ने भीतर ही एक बहाव ला दिया, जिस से उनकी शक्ति जो समाधी-अवस्था मे विलीन थी, प्रेरित हो प्रकृति के रूप मे बढ़ने लगी जी! मेरे भगवन जी और प्रकृति मे कोई जयादा भेद नहीं हे जी; अब देखो अगर प्रकृति अपने जगमग जगमग गुणों को अपने भीतर समाधी-स्थिर कर ले तो क्या रह गया भगवन जी और प्रकृति मे भेद करने के लिए? अर्थात कुछ भी तो नहीं ! प्रकृति से ही बना ये नाशवर शारीर भी अपनी इन्द्रियों से बस प्रकृति के गुणों को ही धारण कराता हे जिसके कारण भीतर हमारे भगवान जी, इन्द्रियों के बाहर की प्रकृति मे खुद को अहसास नहीं कर पाते जी क्योकि शारीर द्वारा प्रकृति के सत्य स्वरुप को ढक, मात्र गुणों को भीतर प्रकट करना ही माया हे जी!
अपने भोले का भगत
....deep
Thursday, May 7, 2009
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