Thursday, May 7, 2009

Mere bhagwan ji ki Prakriti

जय मेरे भोले

मेरे भगवान जी ने जब खुद को अहसास में लेना चाहा तो उनके इलावा कुछ ना था, परन्तु उनकी इस चेष्टा ने भीतर ही एक बहाव ला दिया, जिस से उनकी शक्ति जो समाधी-अवस्था मे विलीन थी, प्रेरित हो प्रकृति के रूप मे बढ़ने लगी जी! मेरे भगवन जी और प्रकृति मे कोई जयादा भेद नहीं हे जी; अब देखो अगर प्रकृति अपने जगमग जगमग गुणों को अपने भीतर समाधी-स्थिर कर ले तो क्या रह गया भगवन जी और प्रकृति मे भेद करने के लिए? अर्थात कुछ भी तो नहीं ! प्रकृति से ही बना ये नाशवर शारीर भी अपनी इन्द्रियों से बस प्रकृति के गुणों को ही धारण कराता हे जिसके कारण भीतर हमारे भगवान जी, इन्द्रियों के बाहर की प्रकृति मे खुद को अहसास नहीं कर पाते जी क्योकि शारीर द्वारा प्रकृति के सत्य स्वरुप को ढक, मात्र गुणों को भीतर प्रकट करना ही माया हे जी!
अपने भोले का भगत
....deep

3 comments:

गीता पंडित said...

बहुत सुंदरता से, सरलता से,
आपने प्रकृति, ईशवर और
माया की व्याख्या की है..... बहुत अच्छे... आभार...प्रदीप जी.....

anamicarai.2008@gmail.com said...

दुर्लभ दुसाध्य है मनुज जीवन, वेद वर्णित सत्य है।
इसी जन्म में ब्रह्मलीन हो, अमर होने का तथ्य है॥
प्राणी मात्र में, ब्रह्म को, साक्षात जब ज्ञानी करे।
अमृत्व पाकर जन्म मृत्यु, के चक्र से प्राणी तरे॥
इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः ।
भूतेषु भूतेषु विचित्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति

Unknown said...

beautiful .ishwar anek swarupo mai virjman hota hai uska sabse suindar n anutha swaroop hai parkriti ............. bas parkriti mai jo kho jata hai apne ko bhul kar mano bhagwan ko pa leta hai .yahi jeewan ka sar bhi hai .......

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